व्यक्ति स्वयं ही बेचैनी का जीवन जीता है और अकारण ही जीवन में अनेक कष्टों को आमंत्रित कर लेता है। एक आदमी था। वह सदा प्रसन्न रहता था। एक दिन उसको उदास देखकर मित्र ने पूछा, मित्र! तुम सदा प्रसन्न रहते थे। तुम्हारी सारी अनुकूलताएं थीं। पर आज तुम बहुत उदास दिख रहे हो, यह क्यों? उसने कहा, मेरी प्रसन्नता गायब हो गई। आज से नहीं, बारह महीनों से वह गायब है। इसका भी कारण है। पहले इस गांव में मेरा मकान सबसे ऊंचा था। न जाने एक व्यक्ति कहां से आ टपका कि उसने मेरे मकान से भी ऊंचा मकान बना डाला। उसी दिन से मेरी प्रसन्नता समाप्त हो गई।  
इसकी कोई दवा नहीं है। आयुर्वेद विज्ञान में, मेडिकल साइन्स में, साइकोलॉजी में इसकी कोई दवा नहीं है। यह साइकोसोमेटिक बीमारी भी नहीं है। इसका कोई स्पष्ट कारण नहीं बना। दूसरे की विशेषता को, दूसरे की सम्पन्नता को सहन न करना ही इसका कारण है। ऍसी बीमारी का उपाय यह है कि व्यक्ति अपनी शक्ति को बढ़ाए, तीन मंजिले मकान के स्थान पर पांच मंजिला मकान बनाने पांच मंजिले के स्थान पर सात मंजिला मकान बनाने की क्षमता को विकसित करे और अघिक कमाए, और अघिक श्रम करे। यह उसका सकारात्मक पक्ष है। मनुष्य का दृष्टिकोण सकारात्मक कम होता है, नकारात्मक अघिक। एप्रोच नेगेटिव होने के कारण वह दुखी होता है। इससे असहिष्णुता का भाव जागता है और असहिष्णुता राहू की भांति चांद को निरंतर ग्रसित करती रहती है।