सार्वजनिक परिवहन के नए साधनों से महानगर में प्रदूषण भी कम होगा


भोपाल । देश के तेजी से विकसित हो रहे प्रदेशों में मध्य प्रदेश इस समय सबसे आगे दौड़ रहा है। यहां होने वाले नवाचारों से अर्थव्यवस्था तो बेहतर हो ही रही है, आमजन के लिए सर्वसुविधाएं भी सुलभ होने लगी हैं। इसी कड़ी में मध्य प्रदेश ने विकास की राह में एक और कीर्तिमान स्थापित कर लिया है। इंदौर में प्रदेश की पहली मेट्रो ट्रेन के ट्रायल रन के साथ ही लोक परिवहन के क्षेत्र में नए अध्याय की शुरुआत हो गई। इंदौर के बाद अब भोपाल में भी जल्द ही मेट्रो का ट्रायल रन होगा और इसके बाद जबलपुर और ग्वालियर को भी मेट्रो जैसे तेज परिवहन माध्यम की सौगात मिलेगी।
इंदौर सहित प्रदेश के अन्य बड़े शहरों में भी आइटी और औद्योगिक क्षेत्रों का तेजी से विस्तार हुआ है। इसके परिणामस्वरूप शहरी क्षेत्र की आबादी में भी तेजी से बढ़ोतरी हो रही है। इससे सार्वजनिक क्षेत्र के बुनियादी ढांचे पर जबरदस्त दबाव बढ़ा है। प्रमुख शहरों में बढ़ रही आबादी के साथ ही सडक़ों पर वाहनों की संख्या भी बढ़ती जा रही है। इससे सिर्फ यातायात का दम ही नहीं फूल रहा बल्कि पर्यावरण के लिहाज से भी हम दिल्ली-बेंगलुरू जैसे शहरों की तरह ही अपने शहरों में खराब आबोहवा से जूझ रहे हैं।

तेजी से बढ़ रही वाहनों की संख्या
प्रदेश की राजधानी भोपाल में 15 लाख से ज्यादा रजिस्टर्ड वाहन सडक़ों पर दौड़ रहे हैं तो इंदौर में 21.5 लाख दो पहिया और चार पहिया वाहन सडक़ों पर होते हैं। इनकी संख्या हर माह तेजी से बढ़ भी रही है। 31 मार्च 2023 को समाप्त हुए वित्तीय वर्ष के आंकडों पर की गौर किया जाए तो अकेले इंदौर शहर में ही एक वर्ष में परिवहन विभाग के पास रजिस्टर्ड होने वाले वाहनों की संख्या 1 लाख 61 हजार है। उधर भोपाल में भी इसी अवधि में 98 हजार 572 वाहन पंजीकृत हुए हैं। ग्वालियर में 70 हजार 928 और जबलपुर में 62281 नए वाहन सडक़ों पर आ गए। वाहनों की इस गति से बढ़ती संख्या को देखते हुए यह अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है कि भले ही प्रदेश का कोई शहर महानगर श्रेणी में फिलहाल नहीं हो लेकिन ट्रैफिक जाम, प्रदूषित हवा और सडक़ों पर वाहनों की रेलमपेल में जल्द ही यहां के शहर महानगरों को टक्कर देने लगेंगे।

20 प्रतिशत भी नहीं करते लोक परिवहन के साधनों का इस्तेमाल
शहरों की बात करें तो यहां 20 प्रतिशत यात्री भी फिलहाल लोक परिवहन के साधनों का इस्तेमाल नहीं करते हैं। 53 प्रतिशत लोगों के पास अपने दो व चार पहिया वाहन हैं, जिनका इस्तेमाल वे आधा-एक किमी के सफर के लिए भी करते हैं। यही कारण है कि सडक़ों के हाल दिनों-दिन खराब होते जा रहे हैं। वाहनों की बढ़ती संख्या पर्यावरण के लिहाज से भी कितनी चुनौतीपूर्ण है इसी से समझा जा सकता है कि एक पेट्रोल या डीजल कार एक वर्ष में 4.6 मीट्रिक टन कार्बन डाई आक्साइड उत्पन्न करती है। अकेले इंदौर में रजिस्टर्ड कारों की संख्या ही चार लाख से अधिक है। इन्हीं से 18.2 लाख मीट्रिक टन कार्बन डाई आक्साइड उत्सर्जित होती है। इसमें तिपहिया और लोडिंग वाहन भी शामिल कर लिएं जाए तो प्रदूषण की स्थिति का अंदाजा लगाया जा सकता है। वाहनों की बढ़ती संख्या के लिहाज से सडक़ें तो काफी पहले ही छोटी पडऩे लगी हैं, लेकिन अब प्रदेश के शहरी क्षेत्र में चलने वाले वाहनों की रफ्तार 15-17 किमी प्रति घंटा से अधिक नहीं रह गई है। जबकि दिल्ली-मुंबई, चैन्नई जैसे शहरों में शहरी क्षेत्र में चलने वाले वाहनों की रफ्तार 25 किमी प्रतिघंटा है। शहरों के निरंतर आर्थिक विकास के लिए आवश्यक हो गया है कि बेहतर सडक़ नेटवर्क के साथ हम मेट्रो जैसे त्वरित परिवहन माध्यमों का जाल तेजी से बिछाएं।


शहरों की सीमाओं का बढ़ा दायरा
बीते दस वर्षों में इंदौर, भोपाल और ग्वालियर जैसे शहरों में विकसित हुए नए औद्योगिक क्लस्टर, स्टार्टअप और आइटी पार्क ने इन शहरों की आर्थिक के साथ ही भौगोलिक संरचना को भी बदल दिया है। डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर के विस्तार से तैयार हो रहे इस नए इको सिस्टम के कारण शहरों की सीमाओं ने अपना दायरा भी बढ़ा लिया है। यह भी आवश्यक हो गया है कि इन औद्योगिक क्षेत्रों के आसपास बन रहे नए आबादी क्षेत्रों में रहने वालों को परिवहन के अच्छे साधन उपलब्ध करवाए जाएं। दस लाख से अधिक आबादी वाले शहरों में उपलब्ध सडक़ें और फ्लाइओवर के साथ ही बस, रिक्शा या अन्य लोक परिवहन के साधन इतने पर्याप्त नहीं हैं कि वे यात्रियों को सुविधा दे सकें। इंदौर सहित प्रदेश के बड़े शहरों में अब मेट्रो ही भविष्य की जरूरत है। उज्जैन में महाकाल-महालोक बनने के बाद इंदौर से सडक़ मार्ग से उज्जैन पहुंचने वाले यात्रियों की संख्या ही हर दिन एक लाख से अधिक है। इसी तरह इंदौर से पीथमपुर औद्योगिक क्षेत्र में भी हर दिन डेढ़ लाख से ज्यादा लोग अप-डाउन करते हैं। नए आइटी पार्क में आने वाली अंतरराष्ट्रीय कंपनियां भी शहरों में परिवहन और आवागमन के साधनों का अध्ययन कर निवेश के लिए कदम बढ़ाती हैं। यही हाल भोपाल में मंडीदीप, बैरागढ़ सहित आसपास के क्षेत्रों में भी है। लेकिन इन शहरों में व्यवस्था को जिस चुनौती से जूझना है, वह है मेट्रो के रूट तक पब्लिक ट्रांसपोर्ट को जोडऩा। बी-टाउन शहरों में लोक परिवहन के साधनों का इस्तेमाल इसलिए भी अधिक नहीं होता क्योंकि फीडर रोड़ से मुख्य मार्गों तक कनेक्टिविटी बेहतर नहीं मिल पाती। यही वजह है कि इन शहरों में लोग अपने वाहनों से सफर करना अधिक पसंद करते हैं। नए दौर की इस परिवहन सेवा को इन शहरों के रहवासी आत्मसात तभी कर पाएंगे जब उन्हें घर के नजदीक से मेट्रो स्टेशन तक की सीधी कनेक्टिविटी मिल जाए।

अहमदाबाद जैसे शहर बेहतर उदाहरण
देश के सबसे स्वच्छ और सबसे स्मार्ट शहर इंदौर से इस नए कदम की शुरुआत के मायने भी यही है कि यह शहर नवाचार को न सिर्फ तुरंत स्वीकार करता है बल्कि उसे सफल कर दूसरों को बता भी देता है कि यह राह मुश्किल नहीं है। अहमदाबाद जैसे शहर इसका बेहतर उदाहरण भी हैं। मेट्रो ट्रेन के सफलतम संचालन से वहां की सडक़ों से 70 लाख वाहन सालाना कम हुए हैं। इससे शहर का पर्यावरण तो बेहतर हुआ ही है बल्कि वर्षा का मौसम हो या क्रिकेट मैच का उल्लास, यात्रियों को आवाजाही में सुगमता मिली है। मप्र में भी हमें इस नेटवर्क को तेजी से विस्तारित करने के ईमानदार प्रयास करने की जरूरत है ताकि भविष्य के मध्य प्रदेश मेट्रो पर सवार होकर विकास की पटरियों पर आगे बढ़ता चले।