वृंदावन धाम के निधिवन को राधा-कृष्ण के रास के लिए जाना जाता है। इस अद्भुत वन वाटिका को लोग निधिवन और मधुवन के नाम से जानते हैं। यह वन बड़ा ही अद्भुत व रहस्यमयी है,जिसके बारे में माना जाता है कि यहां आज भी हर रात राधा-कृष्ण गोपियों संग रास रचाने के लिए आते हैं।दर्शनार्थियों से लेकर हर किसी के लिए इस वन को शाम होते ही बंद कर दिया जाता है और फिर यहां कोई नहीं रहता। आइए जानते हैं क्या है इसका रहस्य...

लताएं बन जाती हैं गोपिया -
लगभग दो एकड़ क्षेत्रफल में फैले निधिवन के वृक्षों की विशेषता यह है कि इनमें से किसी भी वृक्ष के तने सीधे नहीं मिलेंगे तथा इन वृक्षों की डालियां नीचे की ओर झुकी तथा आपस में गुंथी हुई प्रतीत होती हैं। वृन्दावन की रज में उगे हुए ये पेड़ हमेशा हरे रहते हैं। आमतौर पर पेड़ की शाखाएं ऊपर की ओर बढ़ती हैं लेकिन यहां पेड़ों की शाखाएं नीचे की और बढ़ती हैं। ऐसी मान्यता है कि निधिवन की सारी लताएं गोपियों का रूप हैं। जो दिन में एक दूसरे की बाहों में बाहें डाले खड़ी रहती हैं। लेकिन जब अर्द्धरात्रि के समय निधिवन में राधारानी जी,कान्हा जी के साथ रास लीला करती हैं तो ये लताएं गोपियां बन जाती है। ऐसी भी मान्यता है कि जो कोई भी यहां से किसी वृक्ष के पत्ते को लेकर गया है उसके साथ कुछ ना कुछ अहित होता है।

रात में रुकने से होता है अहित-
वृंदावन में सबसे ज्यादा बंदर कही है तो इसी निधिवन में ही हैं,दिनभर यहां बंदरों की उछल-कूद देखी जा सकती है। लेकिन यह बात हैरान करती है कि शाम होते ही बंदर यहां से कुदरती चले जाते हैं। उसके बाद बिल्कुल भी नजर नहीं आते। बंदर ही नहीं अपितु कोई भी जीव जंतु जैसे मोर,पक्षी आदि भी यहां शाम होने के बाद नज़र नहीं आते। स्थानीय लोगों का दावा है कि यह सदियों से होता चला आया है। रात में रुकने की यहां सख्त मनाही है। वृंदावन के स्थानीय पुजारी के मुताबिक जिस किसी भक्त या साधु,सन्यासी ने यहां रात में रुकने की कोशिश की है,वह पागल,उन्मादी या अंधा हो जाता है और एक-दो दिन बाद उसकी मृत्यु हो जाती है।

असीमित ऊर्जा के कारण होता है ऐसा-
यहां के साधु-संत एवं पुजारियों का ऐसा मानना है कि परमेश्वर श्रीकृष्ण के दर्शन उस अमुक व्यक्ति को जरूर प्राप्त हो जाते हैं लेकिन वह भगवान की अपार ऊर्जा को देखकर सहन नहीं कर पाता। या तो उसकी आंखों की रोशनी चली जाती है या उसकी मृत्यु हो जाती है। स्थानीय लोगों और पुजारियों के मुताबिक उनकी मौत भगवान श्रीकृष्ण के दर्शन के बाद ही होती होगी। यही वजह है कि उन सभी लोगों की समाधि इसी वन में आज भी मौजूद है।

बिस्तर पर मिलती हैं सलवटें-
यहां के साधु-संतों और बृज के लोगों का मानना है कि इस अलौकिक निधिवन में भगवान श्रीकृष्ण एवं राधा रानी आज भी मध्य रात्रि में गोपियों संग रास रचाते हैं। रासलीला के बाद निधिवन परिसर में स्थापित रंग महल में शयन करते हैं। रंग महल में राधा और रास रचइया श्रीकृष्ण के लिए रखे गए चंदन के पलंग को शाम सात बजे के पहले ही पूरी तरह सजा दिया जाता है। पलंग पर मखमल की सुंदर सुगंधित चादर बिछाई जाती है साथ में तकिए और मसनद भी लगाए जाते हैं। पलंग के ही बगल में एक लोटा पानी,राधाजी के सोलह श्रृंगार का सामान,दातुन और मीठा पान रख दिया जाता है। भोग के लिए लड्डू और माखन मिश्री का प्रसाद रखा जाता है। सुबह पांच बजे जब रंग महल का जब दरवाजा खुलता है तो बिस्तरों पर सलवटें मिलती हैं,ऐसा लगता है जैसे कोई यहां सोकर गया है। लोटे का जल जो शाम को पुजारियों द्वारा भगवान के लिए भरा जाता है,खाली होता है एवं दातुन कुची हुई नजर आती है और पान चवाया हुआ मिलता है। रंगमहल में भक्त केवल श्रृंगार का सामान ही चढ़ाते है और प्रसाद के स्वरूप उन्हें भी श्रृंगार का सामान मिलता है। मान्यता है कि जो कोई भी भक्त यहां श्रद्धा से राधा-कृष्ण के दर्शन करता है,भगवान उसकी मनोकामना को अवश्य पूरा करते हैं।