नई दिल्ली । सुप्रीम कोर्ट मंगलवार को इलेक्टोरल बॉन्ड योजना को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर 11 अप्रैल को विचार करने के लिए सहमत हुआ, ताकि यह जांच की जा सके कि मामले की सुनवाई संविधान पीठ द्वारा की जानी चाहिए या नहीं। एक याचिकाकर्ता का प्रतिनिधित्व करने वाले अधिवक्ता शादान फरासत ने भारत के मुख्य न्यायाधीश डी.वाई.चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष तर्क दिया कि मामले का पहलू राजनीतिक दलों के वित्त के मूल से संबंधित है और इस मुद्दे पर एक आधिकारिक घोषणा की आवश्यकता है। अदालत के विचारार्थ उनके द्वारा तैयार किए गए सवालों की ओर इशारा कर फरासत ने कहा कि अदालत इस मामले को संविधान पीठ द्वारा सुनने पर विचार कर सकती है।
एक याचिकाकर्ता का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता दुष्यंत दवे ने कहा, हमें तभी फायदा होगा, जब यह संविधान पीठ होगी। इससे किसी का अहित नहीं होगा। हां, यह मुद्दा हमारे लोकतांत्रिक अस्तित्व के मूल में जाता है। अब तक 12,000 रुपये और सबसे बड़ी पार्टी को दो तिहाई से अधिक मिलता है। पीठ में न्यायमूर्ति पी.एस. नरसिम्हा ने केंद्र के वकील से पूछा कि क्या वह मामले को संविधान पीठ को सौंपने के पहलू पर बहस करने के लिए तैयार हैं। वकील ने जवाब दिया कि अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी, जो सुनवाई के दौरान अदालत कक्ष में मौजूद नहीं थे, को तर्क देना होगा कि संविधान पीठ को संदर्भ दिया जाना चाहिए या नहीं।
दलीले सुनने के बाद, सुप्रीम कोर्ट ने 11 अप्रैल को सुनवाई के लिए मामले को निर्धारित किया, यह जांचने के लिए कि क्या याचिकाओं को संविधान पीठ को भेजा जाना चाहिए। केंद्र ने पिछले साल अक्टूबर में सुप्रीम कोर्ट को बताया था कि इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम राजनीतिक फंडिंग का बिल्कुल पारदर्शी तरीका है। शीर्ष अदालत एनजीओ एसोसिएशन फॉर डेमोकेट्रिक रिफॉर्म्स (एडीआर) की अगुआई वाली याचिकाओं के एक बैच पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें राजनीतिक फंडिंग के स्रोत के रूप में केंद्र की इलेक्टोरल बांड योजना की वैधता को चुनौती दी गई है।
शीर्ष अदालत ने मार्च 2021 में, पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, असम, केरल और पुडुचेरी में चुनावों से पहले इलेक्टोरल बांड की बिक्री को रोकने के लिए एडीआर द्वारा दायर दो स्थगन आवेदनों पर विचार करने से इनकार कर दिया। शीर्ष अदालत ने नोट किया कि राजनीतिक दलों के फंडिंग में गुमनामी की चिंताओं या उनके दुरुपयोग की आशंकाओं पर इलेक्टोरल बांड की बिक्री को रोकने का कोई औचित्य नहीं था। अप्रैल 2019 में, शीर्ष अदालत ने सभी राजनीतिक दलों को इलेक्टोरल बांड की प्राप्तियों का विवरण भारत के चुनाव आयोग (ईसी) को एक सीलबंद लिफाफे में प्रस्तुत करने का निर्देश दिया।