सागर की लाखा बंजारा झील के किनारे करीब 270 वर्ष पुराना वृंदावन बाग मठ मंदिर है. यहां पर करीब ढाई सौ साल से अखंड धूना जल रहा है. जिसे ढाई शताब्दि पहले गूदड़ जी महाराज ने जलाया था. तब से आज तक इस दिव्य स्थान पर इसकी आग जल रही है. मंदिर में होने वाले किसी भी कार्य के लिए अग्नि को यहीं से लिया जाता है. इस मठ में अग्नि देवता को प्रत्यक्ष देवता के रूप में पूजा जाता है.
मंदिर के महंत नरहरी दास जी महाराज ने कहा कि चाहे सुबह भगवान की रसोई जलानी हो या यज्ञ में अग्नि का प्रवेश कराना हो. इस गादी वाले धूना से ही अग्नि ली जाती है. प्रकृति के जो पंचभूत हैं, उसमें अग्नि देव प्रधान है. वहीं, इसकी देखरेख मंदिर के मुख्य महंत से लेकर सेवादार और पढ़ने वाले विद्यार्थी तक करते हैं.

इस धूना का चमत्कार है ऐसा 
बताया जाता है कि पहले आग जलाने के लिए इस तरह की कोई साधन नहीं होते थे.जिससे बार-बार आग को जला लिया जाए. इसके साथ ही साधु संत भगवान की भक्ति में इतने लीन होते हैं कि वह इस तरह के कार्य कर अपना समय नहीं गवाना चाहते. ऐसे ही एक गूदड जी महाराज ने एक बार आग जलाई उस समय बरसात का मौसम था तो उन्होंने जब तक बारिश होती रही, तब तक आग को बुझने ही नहीं दिया. इसके बाद जब तक महाराज जीवित रहे तो यहां पर निरंतर इस कुंड में आग जलने की व्यवस्था होती रही. महाराज का देवलोक गमन होने के बाद जितने भी महंत यहां पर आए तो उन्होंने इस परंपरा को बनाए रखा. यही वजह है कि यहां कभी लकड़ी लगाकर लौ निकलती है तो कभी इस कुंड में धधकते हुए अंगारे दिखाई देते हैं.इसमें विराजमान राम दरबार 275 साल पुराना है, जिसकी स्थापना 1748 में इस मठ के पहले महंत गूदणजी महाराज ने कराई थी. वर्तमान 10वें गादी महंत के रुप में नरहरिदास महाराज विराजमान है. यहां पर गज परंपरा भी जो 112 सालों से चली आ रही है, इसके लिय 4 पीढ़ियों से मंदिर में हाथी हैं.