नई दिल्ली । अब मैजिकल ट्रीटमेंट को असम सरकार ने बैन कर ‎दिया है। इससे ईसाई समुदाय नाराज हो रहा है। क्यों‎कि इस ‎बिल से प्रार्थना से इलाज भी लपेटे में आ गया है। बता दें ‎कि पूर्वोत्तर राज्य असम में एक के बाद एक कई बड़े फैसले हो रहे हैं। कुछ समय पहले ही वहां की कैबिनेट ने स्वदेशी मुस्लिम आबादी के सामाजिक-आर्थिक सर्वे को मंजूरी दी। इससे उन मुस्लिमों को ज्यादा सुविधाएं मिल सकेंगी, जो असम के मूल निवासी हैं, जबकि बांग्लाभाषी समुदाय अलग छंट जाएगा। इस बात पर विरोध थमा भी नहीं था, कि हिमंत सरकार ने एक और बिल पारित कर दिया। असम हीलिंग (प्रिवेंशन ऑफ एविल) प्रैक्टिसेस बिल एक तरह से जादू-टोने और झाड़-फूंक से इलाज पर रोक लगाता है। लेकिन सवाल ये है कि इसपर कोई समुदाय क्यों खुद को निशाने पर आया महसूस कर रहा है। स्टेट में धर्मांतरण की शिकायतों के साथ ही उसका विरोध करने वाले दल भी बढ़े। 
‎पिछले महीने एक हिंदू समूह कुटुंब सुरक्षा परिषद ने स्थानीय मिशनरी स्कूलों से कहा कि वे अपने कैंपस से क्रिश्चियन प्रतीक हटा लें। एक और ग्रुप ने कई शहरों में कैंपेन चलाया, जिसमें स्कूलों से एंटी-भारत गतिविधियों पर रोक लगाने की मांग है। संगठनों का कहना है कि स्कूलों का इस्तेमाल धार्मिक चीजों के लिए हो रहा है। इस गहमागहमी के बीच सोमवार, 26 फरवरी को वहां की विधानसभा में एक बिल पारित हो गया। कथित तौर पर ये ईसाई कम्युनिटी को टारगेट करने वाला है। हीलिंग प्रैक्टिसेस बिल में कहा गया है कि ये मासूम और भोले-भाले लोगों का शोषण करने के लिए बनी गैर-वैज्ञानिक हीलिंग प्रैक्टिस को क्राइम घोषित करता है।
इधर असम क्रिश्चियन फोरम नामक संगठन ने कहा कि ईसाइयों में मैजिकल हीलिंग जैसा कोई शब्द नहीं। यहां प्रेयर के जरिए इलाज होता है, जैसा दूसरे धर्मों में भी है। अगर कोई बीमार शख्स हमारे पास आए तो उसके लिए सामूहिक रूप से प्रार्थना की जाती है। ये जादू नहीं है, बल्कि पूरी दुनिया में ऐसा किया जाता है। क्रिश्चियन्स ही नहीं, कई धर्मों में प्रार्थना से इलाज की बात होती है। इसे फेथ हीलिंग भी कहते हैं। इसमें किसी बीमारी को ठीक करने के लिए व्यक्तिगत तौर पर या ग्रुप में दुआएं की जाती हैं। यही वजह है ‎कि चंगाई सभाएं भी संदेह के घेरे में आने वाली हैं।