Opposition Meet: लगता है कि कांग्रेस अभी वेट एंड वॉच वाले फार्मूले पर चलना चाहती है. विपक्षी एकता को लेकर कांग्रेस अभी जल्दबाजी में नहीं है. बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने 12 जून को पटना में विपक्षों नेताओं की बैठक बुलाई है. राहुल गांधी ने इस मीटिंग में मौजूद रहने का सहमति भी दी थी. अभी वे विदेश के दौरे पर हैं. राहुल ही नहीं अब तो कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे भी बैठक में नहीं रहेंगे.
पार्टी की तरफ से बस एक मुख्यमंत्री और एक सीनियर नेता ही पटना जायेंगे. बिहार कांग्रेस के अध्यक्ष अखिलेश प्रसाद सिंह ने इस बात की जानकारी दी. पटना जाने वाले मुख्यमंत्री अशोक गहलोत होंगे या भूपेश बघेल या फिर सिद्धरमैया, अभी इस बारे में जानकारी नहीं दी गई है. नीतीश कुमार पहले ही कह चुके हैं कि बिना कांग्रेस के विपक्षी एकता का कोई मतलब नहीं है. ऐसे में पटना वाली बैठक से कांग्रेस पार्टी की ये बेरुख़ी कई सवाल खड़े करती है.
क्या कांग्रेस ने जान बूझ कर ये फैसला किया है? अगर हां तो फिर इसकी वजह क्या है? कर्नाटक में सरकार बनाने के बाद से ही कांग्रेस का जोश हाई है. वो किसी भी क़ीमत पर सुई बराबर राजनीतिक ज़मीन छोड़ने को तैयार नहीं है. पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व को लगता है कि साल के आख़िर में होने वाले कई राज्यों के चुनाव में भी उसकी ही सरकार बनेगी. ऐसे में वो विपक्षी एकता अपनी शर्तों पर करना चाहती है. इसीलिए अभी वो बाकी विपक्षी पार्टियों का मूड देख रही है. अरविंद केजरीवाल के साथ रहें या न रहें, इस पर भी अब तक कोई फैसला नहीं हुआ है. इस मुद्दे पर कांग्रेस में एक राय नहीं है. कांग्रेस नेतृत्व आम आदमी पार्टी पर भरोसा करने को तैयार नहीं है.

विपक्षी एकता की बैठक पटना में करने का सुझाव बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने दिया था. वे इस मीटिंग में शामिल होंगी, लेकिन उनकी पार्टी टीएमसी और कांग्रेस के रिश्ते जग जाहिर हैं. कांग्रेस को कोसने का कोई मौका वह नहीं छोड़ती हैं. जिस राज्य में जो पार्टी मज़बूत है, वहीं चुनाव लड़े, ममता के इस बयान से कांग्रेस के नेता ग़ुस्से में हैं. पार्टी का केंद्रीय नेतृत्व अभी ममता के साथ दिखने को तैयार नहीं है.

अखिलेश यादव को लेकर भी कांग्रेस का अब तक यही स्टैंड रहा है. ममता की तरह अखिलेश ने भी बैठक में मौजूद रहने की सहमति दे दी है. समाजवादी पार्टी ने कांग्रेस से गठबंधन कर 2017 का विधानसभा चुनाव लड़ा, लेकिन उसके बाद से रिश्ते दिन ब दिन ख़राब होते गए. अब तो अखिलेश को कांग्रेस और बीजेपी का स्वभाव एक जैसा लगता है. ऐसे में दोनों के बीच समझौता कैसे हो?

यूपी में लोकसभा की 80 सीटें हैं. दिलचस्प बात ये है कि ममता और अखिलेश दोनों ही नीतीश पर भरोसा करते हैं और राहुल गांधी भी. लेकिन कांग्रेस अभी फूंक फूंक कर आगे बढ़ना चाहती है. नीतीश के एक करीबी नेता ने बताया कि उन्हें भरोसा है कि कम से कम कांग्रेस अध्यक्ष इस मीटिंग में ज़रूर आयेंगे. बिहार में नीतीश की अगुवाई वाली सरकार में आरजेडी के साथ कांग्रेस भी है. सोनिया गांधी के सबसे भरोसेमंद और पुराने साथी लालू यादव को भी लगता है कि कांग्रेस इस मीटिंग को गंभीरता से लेगी.