नई दिल्ली । सुप्रीम कोर्ट की 5 सदस्यीय पीठ जम्मू-कश्मीर में आर्टिकल 370 हटाने और राज्य को दो केंद्रशासित प्रदेश में बांटने के मोदी सरकार के फैसले के खिलाफ 2 अगस्त से रोजाना सुनवाई करेगी। याचिका में कई अहम कानूनी और संवैधानिक पहलुओं को लेकर सुनवाई होगी। सुप्रीम कोर्ट चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ के नेतृत्व में सुनवाई करेगी। चंद्रचूड़ के अलावा जस्टिस संजय किशन कौल, जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस सूर्यकांत भी शामिल हैं। याचिकाकर्ताओं ने केंद्र के फैसले को शीर्ष अदालत में चुनौती दी है। गौरतलब है कि आर्टिकल 370 खत्म करने के खिलाफ 20 से ज्यादा याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की गई हैं।
दरअसल 5 अगस्त को केंद्र ने आदेश जारी कर संविधान (जम्मू-कश्मीर अप्लीकेशन) आदेश, 1954 और संविधान के आदेश 2019 में बदलाव कर राज्य से आर्टिकल 370 को हटाने का फैसला किया। मोदी सरकार ने आर्टिकल 367 में एक और क्लाउज (4) जोड़ते हुए साफ किया कि भारत का संविधान जम्मू-कश्मीर में लागू होगा। 6 अगस्त को राष्ट्रपति ने इस बाबत आदेश भी जारी कर दिया।
आर्टिकल 370 के आवेदन के तहत आर्टिकल 1 और आर्टिकल 370 ही जम्मू-कश्मीर में लागू होता था। इसके अलावा संविधान का कोई अन्य प्रावधान राज्य में लागू नहीं होता था। इसके लिए आर्टिकल 370 के क्लाउज (1) (डी) राष्ट्रपति को ये शक्तियां देता है कि वहां जम्मू-कश्मीर की सरकार की सहमति से अपनी कार्यकारी शक्तियों को लागू कर सकता है। आर्टिकल 370 की क्लाउज 3 राष्ट्रपति को ये शक्तियां देता है कि ये आर्टिकल तभी लागू होगा जब राज्य की विधानसभा इसकी अनुशंसा करेगी। चूंकि जम्मू-कश्मीर की संविधान सभा वजूद में नहीं है, इस 1957 में ही भंग कर दिया गया था। इसके बाद जबतक नई विधानसभा नहीं चुनी जाती तबतक राष्ट्रपति की शक्तियों पर रोक लग जाती है। आर्टिकल 370 में इसके उद्देश्य का भी जिक्र किया गया था। इसके तहत राज्य सरकार जम्मू-कश्मीर के महाराजा (बाद में इस सदर-ए-रियासत कर दिया गया) मंत्रिमंडल की सलाह से काम करेंगे। लेकिन जम्मू-कश्मीर में उस वक्त कोई सरकार नहीं थी। इसके बाद राष्ट्रपति के पास राज्य के अधिकार को अपने में समाहित करने के अलावा कोई रास्ता नहीं था।
इसका ये मतलब हुआ कि केंद्र के पास ऐसा कोई संविधानिक और कानूनी मैकनिजम नहीं था जो आर्टिकल 370 में बदलाव कर सके। हालांकि, केंद्र सरकार ने आर्टिकल 370 (1) (डी) के तहत राष्ट्रपति की शक्तियों का इस्तेमाल आर्टिकल 367 में बदलाव के लिए किया। इसमें संविधान की व्याख्या की शक्ति दी गई है। 
इसके बाद राष्ट्रपति शासन के जरिए राज्य के सारे अधिकार संसद के पास आ गए। इसका मतलब ये हुआ कि राष्ट्रपति का शासन जम्मू-कश्मीर में लागू हो गया। इसके साथ ही संसद ने राज्य विधानसभा की जगह ले ली। जम्मू-कश्मीर संविधान सभा की शक्तियां राज्य विधानसभा के पास दी गई, राज्य विधानसभा भंग हो चुकी थी, इस तरह राष्ट्रपति एक तरह अपने ही फैसलों का अनुमोदन खुद ही करते रहे। इस तरह के तर्क दिए गए कि चूंकि राज्य में राष्ट्रपति शासन था और जबतक कोई चुनी हुई सरकार नहीं हो तबतक राष्ट्रपति शासन के प्रशासनिक अधिकारी वैसे फैसले नहीं ले सकते हैं, जिसमें राज्य के संविधानिक स्ट्रक्चर में बदलाव करे।
जम्मू-कश्मीर के संविधान को भंग करने के फैसले को भी चुनौती दी गई है। क्योंकि जम्मू-कश्मीर विधानसभा के पास जम्मू-कश्मीर संविधान के तहत भारत के संविधान में बदलाव वाले अनुशंसा करने की कोई शक्ति नहीं थी। जम्मू-कश्मीर संविधान के आर्टिकल 147 के तहत राज्य की विधानसभा को ऐसे किसी भी अनुशंसा करने से रोक लगाता है जिसमें भारतीय संविधान पूरी तरह से राज्य में लागू हो। अब तर्क दिया जा रहा है कि इसका ये मतलब हुआ कि जम्मू-कश्मीर विधानसभा तक भी कानूनी तौर पर राष्ट्रपति के आदेश को लागू करने की सहमति नहीं दे सकता है।