गाय के गोबर से तैयार ईधन का होगा स्पेस रॉकेट में इस्तेमाल
नई दिल्ली । अब तक गाय के गोबर का इस्तेमाल जैव उर्वरक, देशी खाद, रसोई गैस जैसी कई बुनियादी जरूरतों और धार्मिक अनुष्ठानों में होता था, लेकिन अब इसका इस्तेमाल रॉकेट को अंतरिक्ष में भेजने के लिए होगा है।
जापान में इंजीनियरों ने गाय के गोबर से प्राप्त तरल मीथेन गैस से संचालित एक नए किस्म के रॉकेट इंजन का परीक्षण किया है, जो अधिक टिकाऊ प्रणोदक के विकास की ओर ले जा सकता है। स्टार्टअप इंटरस्टेलर टेक्नोलॉजीज इंक ने बयान में कहा है कि रॉकेट इंजन, जिस जीरो कहा जाता है, का जापान के होक्काइडो स्पेसपोर्ट में 10 सेकंड तक स्थैतिक अग्नि परीक्षण किया गया है। कंपनी ने कहा कि छोटे उपग्रह प्रक्षेपण यान यानी जीरो, तरल बायोमीथेन द्वारा संचालित है। यह बायोमीथेन पशुओं के गोबर से प्राप्त होता है। कंपनी को यह होक्काइडो के डेयरी फार्मों से प्राप्त हुआ है।
एक्स पर रॉकेट इंजन के परीक्षण का फुटेज साझा किया है। वीडियो में दिख रहा है कि इंजन चालू हो रहा है और उससे शक्तिशाली क्षैतिज नीली लौ निकलती दिखाई दे रही है। कंपनी ने कहा कि यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी द्वारा इस तरह का रॉकेट इंजन विकसित करने के बाद किसी निजी कंपनी द्वारा पहली बार इस तरह का एलबीएम ईंधन तैयार किया गया है। कंपनी ने इस रॉकेट इंजन साइंस के विकास में एक मील का पत्थर करार देकर कहा है कि ऐसा विश्व में पहली बार हुआ है। कंपनी ने कहा है कि एलबीएम ईंधन बायोगैस के मुख्य घटक मीथेन को अलग और परिष्कृत करके और बाद में इस लगभग -160 डिग्री सेल्सियस पर द्रवीकृत करके तैयार किया गया है।
यह अनूठा प्रयोग उस समय में हुआ है, जब पूरी दुनिया जलवायु परिवर्तन के मुद्दे पर मंथन कर रही है कि कैसे पूरी दुनिया में कार्बन उत्सर्जन कम किया जाय और ग्लोबल वार्मिंग को कम किया जाय। हाल की कई स्टडीज में यह खुलासा हुआ है कि पारंपरिक रूप से उपयोग किए जाने वाले रॉकेट ईंधन से विश्व पर्यावरण को नुकसान पहुंच रहा है। रॉकेट इंजन में पारंपरिक ईंधन के जलने से कालिख और अन्य प्रदूषकों के अलावा ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन होता है, जो चिंताएं पैदा करती हैं।