बेंगलुरु । भारत के चंद्रयान-3 मिशन के  लैंडर के 23 अगस्त को चंद्रमा पर सॉफ्ट लैंडिंग की उम्मीद है। दूसरी ओर, रूस ने 10 अगस्त को अपना चंद्र मिशन लूना -25 लॉन्च किया, जो 21 अगस्त को चांद के साउथ पोल पर सॉफ्ट लैंडिंग कर सकता है। इस बीच चंद्रयान-3 मिशन को लेकर भारतीय स्पेस रिसर्च ऑर्गनाइजेश के पूर्व प्रमुख के सिवन ने कहा है कि भारत के मंगल मिशन की लागत बेशक कुछ हॉलीवुड फिल्मों की तुलना में कम हो सकती है। हालांकि, हमें भविष्य में ऐसे मिशन के लिए ज्यादा फंड और बड़े रॉकेटों के लिए रास्ता बनाना होगा। इसरो के पूर्व चीफ के सिवन ने लूनर मिशन और चंद्रयान-3 को लेकर एक समाचार चैनल से कहा, हमें बड़े रॉकेट और बड़े सिस्टम की जरूरत है। हम सिर्फ कम लागत वाले इंजीनियरिंग के भरोसे नहीं रह सकते। हमें इससे आगे जाकर सोचना होगा। सिवन ने कहा, हमें हाई-पावर रॉकेट और हाई-लेवल टेकनीक की भी जरूरत है। इसके लिए इस सरकार ने काफी कुछ किया है, जो अच्छी बात है। सरकार ने स्पेस एक्टिविटी को प्राइवेट इंडस्ट्री के लिए खोल दिया है।
पूर्व इसरो प्रमुख ने कहा कि प्राइवेट इंडस्ट्री स्पेस साइंस में दिलचस्पी दिखा रही है। इसके नतीजे भी दिखने लगे हैं। उन्होंने कहा, मुझे यकीन है कि वे जल्द ही हाई-एंड तकनीक भी अपनाने में काबिल होंगे। मेरे ख्याल से इसमें इंवेस्टमेंट कोई समस्या नहीं होगी। 
के सिवन ने  कहा, गगनयान मिशन से भारत की महत्वाकांक्षा को और बढ़ावा मिलेगा। इसके जरिए भारत अपना पहला मानवयुक्त अंतरिक्ष यान मिशन शुरू कर रहा है। एक बार जब यह टेकनीक साबित हो जाएगी, तो हम एक स्पेस स्टेशन, चांद पर एक पर्मानेंट ह्यूमन हैबिटेट (चंद्रमा पर एक स्थायी मानव निवास) और कई अन्य चीजों के बारे में सोच सकते हैं।
2009 में चंद्रयान-1 के जरिए चंद्रमा पर पानी खोजने को लेकर वैज्ञानिकों की प्रतिक्रिया पर रोशनी डालते हुए सिवन ने कहा, यह पूरे इसरो समुदाय के लिए वास्तव में एक रोमांचक क्षण था। जब किसी चीज के बारे में दुनिया ने बताया गया कि वह चांद पर नहीं है और उसे भारत ने खोज लिया।।। उससे ज्यादा खुशी की बात और क्या होगी? मुझे भी इस खोज पर खुशी हुई।
मिशन की सफलता के लिए क्वालिटी जरूरी
रॉकेट लॉन्च करने के लिए पहले पोलर सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल, फिर जियोसिंक्रोनस सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल  का इस्तेमाल हुआ। अब लॉन्चिंग के लिए लॉन्च व्हीकल मार्क-III  के इस्तेमाल पर सिवन ने कहा, स्पेस सिस्टम के लिए चाहे यह एक रॉकेट या स्पेसक्राफ्ट हो,  इनकी सफलता दो चीजों पर निर्भर है-क्वालिटी और रिलायबिलिटी। इनके बिना हम किसी भी मिशन को हासिल नहीं कर पाएंगे। उन्होंने कहा, स्पेस सिस्टम को सिर्फ एक बार ही काम करने का मौका मिलेगा। और वह भी स्पेस में। इसलिए हमारे सिस्टम की क्वालिटी सबसे अच्छी होनी चाहिए।
क्रायोजेनिक इंजन भविष्य की जरूरत
पश्चिम के दबाव के बावजूद भारत द्वारा क्रायोजेनिक इंजन विकसित करने के महत्व पर पूर्व इसरो प्रमुख ने कहा कि पेलोड क्षमताओं को बढ़ाने के लिए ऐसे इंजन जरूरी भी हैं। उन्होंने कहा, इसके बिना हम जिन सैटेलाइट को ले जा सकते हैं, उनका द्रव्यमान कम हो जाएगा। हमने अपने दम पर क्रायोजेनिक इंजन विकसित करना शुरू कर दिया है। हमने इसी तरह के इंजन बनाने के लिए रूसियों के साथ काम किया। अब हमने नए, हाई-पावर क्रायोजेनिक इंजन विकसित किए हैं। ये इंजन बहुत अच्छे से काम कर रहे है। इसके साथ ही अब हम सेमी-क्रायोजेनिक इंजन तकनीक पर काम कर रहे हैं।