इंफोसिस के सह संस्थापक अपने बयानों को लेकर चर्चा में रहते हैं। फिर चाहे उनका हफ्ते में 70 घंटे काम करने वाला बयान हो या फिर अपनी पत्‍नी सुधा मूर्ति को इंफोसिस के साथ नहीं जुड़ने देने का बयान। एक बार फिर नारायण मूर्ति का इंफोसिस के कर्मचारियों को लेकर दिया बयान चर्चा में है।

नारायण मूर्ति ने कहा कि 'मुझे अतीत में इंफोसिस के कर्मचारियों को उनकी मेहनत और योगदान के अनुरूप पर्याप्त रूप से पुरस्कृत नहीं करने का मलाल है। उनका योगदान मेरे जितना ही या उससे भी ज्‍यादा का रहा है।' मूर्ति ने ये बातें अपनी पुस्‍तक के विमोचन के बाद पत्रकारों के सवालों के जवाब में कहीं।

मूर्ति ने कहा, 'मुझे इस बात का अफसोस है कि हम कर्मचारियों को उतना नहीं दे सके जितना हम देना चाहते थे। उस समय, कंपनी की प्राथमिकता बाजार में टिकना और दीर्घकालिक वृद्धि हासिल करना था।' उन्होंने माना कि कंपनी ने शुरुआती दौर में पूंजी संरक्षण और विस्तार पर अधिक ध्यान दिया, जिसका अर्थ था कि कर्मचारियों को मिलने वाला पैसा उतना नहीं था जितना वह हो सकता था।

नारायण मूर्ति ने साथ ही कहा कि उन्हें इसके बारे में 'बहुत सावधानी से' सोचना चाहिए था। उन्होंने कहा कि उन असाधारण लोगों को भी लाभ मिला होता।

1981 में पुणे में इंफोसिस की स्‍थापना

इंफोसिस की स्‍थापना जुलाई 1981 में पुणे में हुई थी जो कि अब बेंगलुरु स्थित कंपनी बन गई है। इसकी सह-स्थापना मूर्ति सहित सात इंजीनियरों ने की थी। अन्य सह-संस्थापक नंदन नीलेकणि, क्रिस गोपालकृष्णन, एसडी शिबूलाल, के दिनेश, एनएस राघवन और अशोक अरोड़ा शामिल हैं।

पिछले महीने ही मूर्ति ने 'अफसोस' व्यक्त किया था कि उन्होंने अपनी पत्नी सुधा मूर्ति को इंफोसिस में शामिल होने नहीं दिया। सुधा मूर्ति ने ही इंफोसिस की स्थापना के लिए अपने पति को 10,000 रुपये की प्रारंभिक पूंजी प्रदान की थी।

नारायण मूर्ति ने यह भी बताया कि उनके समय में इंफोसिस में किसी भी फैसले पर पहुंचने से पहले सभी की राय ली जाती थी।