कहते हैं जब हौसला बना लिया ऊंची उड़ान का, फिर देखना फिजूल है कद आसमान का... कुछ ऐसे ही मजबूत इरादों के साथ निकली गरियाबंद की कनकलता ने उत्तराखंड में सबसे ऊंची चोटी को फतह करने में कामयाबी हासिल की है। कनकलता और उनके छह साथियों ने माउंटेन क्लाइम्बिंग (Mountain Climbing) के क्षेत्र में अपना लोहा मनवाते हुए उत्तराखंड केदारकंठा ट्रेक (Kedarkantha Trek) पर 12,500 फुट की ऊंचाई पर तिरंगा लहराया है। साथ ही हमर संस्कृति हमर पहचान छत्तीसगढ़ के मान सम्मान हसदेव के जंगलों को बचाने की अपील भी की। 

कनकलता ने कहा कि मेरी यात्रा 29 दिसंबर से शुरू हुई थई। 29 दिसंबर को मैं रायपुर से देहरादून के लिए ट्रेन से रवाना हुई। फिर देहरादून से साकरी के लिए गाड़ी में रवाना हुई। साकरी से मेरी पदयात्रा चालू हुई। जिसमें एक तारीख से चार तारीख तक और चार तारीख की रात 2 बजे सममिट के लिए निकले रास्ते में बहुत सारी कठिनाइयां आई।

उन्होंने आगे बताया कि जैसे-जैसे हम ऊपर चढ़ते जा रहे थे। वैसे वैसे ऑक्सीजन लेवल कम हो रहा था। हमारे साथ भी ऐसा ही हुआ। 12,500 फीट ऊपर हमें चढ़ाई करनी थी। रास्ता बहुत ही कठिन था। तीन दिन हमारी यात्रा लगातार चलती रही। रात में आराम करने का समय मिलता था। अगल-बगल खाई और बीच में रास्ता वह भी पूरी बर्फ से ढका था। जिससे बहुत मुश्किल था। साथ ही साथ ब्लैक आइस भी पूरी रास्ते में मिली।

जिससे पैर स्लिप हो रहा था। फिर भी हम संभल संभल कर अपनी मंजिल तक पहुंचे। टोटल 20 किलोमीटर का रास्ता तय करना था। जो हमारे लिए बहुत ही मुश्किल और चैलेंजिंग था। रात में हमें अपने टेंट पर रहने के लिए स्लीपिंग बैग देते थे। क्योंकि तापमान -17 से  -18 चला जाता था। जिससे कि हम सुरक्षित रहें। सफर का अनुभव बहुत ही अच्छा रहा और आगे ऐसे ही माउंट एवरेस्ट पर चढ़ने की तैयारी रहेगी।

आगे बताया कि हमारे पूरे क्रू मेंबर और उनके सपोर्ट से आज मैं उत्तराखंड में तिरंगा लहरा सकी हूं। इस यात्रा में हम छह लोग थे। जिसमें छत्तीसगढ़ गुजरात, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश से शामिल हुए। छत्तीसगढ़ से भारत की पैदल यात्रा करने वाले बलौदा बाजार निवासी सौरभ देवांगन और मैं शामिल थी। सौरभ देवांगन पिता लुकेश देवांगन ,ग्राम पंचायत ज़ारा ,खाना पलारी जिला बलौदाबाजार अपने मित्र अजीतेश शर्मा पर्यावरण बचाओ का संदेश लेकर भारत यात्रा कर रहे हैं। जो 07.08.2021 से अपनी यात्रा शुरू करके 14 राज्यों की यात्रा कर देहरादून उत्तराखंड पहुचें। फिर वहां से हम सभी ने मिलकर केदारकंठ ट्रेक पूरा किया।