सनातन संस्कृति में  मांगलिक कार्य मुहूर्त के हिसाब से किए जाते हैं. ऐसा करना सुखी जीवन समृद्ध जीवन खुशहाल जीवन के लिए अति उत्तम माना जाता है. कभी-कभी मुहूर्त के फेर में कार्य लंबे समय के लिए टल भी जाते हैं, लेकिन साल में ढाई दिन का मुहूर्त ऐसा होता है जिसमें आपको पोथी पत्रा पंचांग देखने की आवश्यकता नहीं होती है. यह अबूझ मुहूर्त होता है और इसमें कोई भी शुभ कार्य मांगलिक कार्य बिना रोक-टोक कर सकते हैं. शादी विवाह जैसा कार्य भी बिना पंडित के पूछे इस दिन कर सकते हैं या कहें कि जो 16 संस्कार जन्म से लेकर मृत्यु तक के बताए गए हैं वह सभी कर सकते हैं. इस ढाई दिन के मुहूर्त में अक्षय तृतीया ,बसंत पंचमी और दशहरा का आधा दिन होता है.

शुभ मुहूर्त में यह संस्कार होते हैं संपन्न
शुभ मुहूर्त देखकर होने वाले 16 संस्कार में गर्भाधान, पुंसवन, सीमन्तोन्नयन, जातकर्म, नामकरण, निष्क्रमण, अन्नप्राशन, चूड़ाकर्म, विद्यारंभ, कर्णवेध, यज्ञोपवीत, वेदारम्भ, केशान्त, समावर्तन, विवाह तथा अन्त्येष्टि हैं.

ऐसे होता हैं ढाई दिन का शुभ मुहूर्त
पंडित यशो वर्धन चौबे बताते हैं कि सनातन धर्म में ढाई मुहूर्त होता है. एक मुहूर्त एक दिन का होता है अक्षय तृतीया पर जो वैशाख शुक्ल पक्ष की तृतीय तिथि पर पड़ती है. इसके बाद बसंत पंचमी यानी माघ मास की शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि एक दिन का यह पूरा मुहूर्त होता है. इस दिन विवाह संस्कार होता है. अक्षय तृतीया पर भी विवाह होते हैं. केवल दशहरा जो होता है उस दिन दोपहर के बाद आधे दिन का मुहूर्त होता है. दोपहर में 12 के बाद से ऐसा यह ढाई मुहूर्त होता है. साल भर में केवल ढाई दिन में भोजपत्र का विशेष पूजन होता है.


सरस्वती जी के बसंत पंचमी के दिन भोजपत्र उसी के फल स्वरुप अक्षय तृतीया पर भी भोजपत्र का पूजन होगा. उसी के आधे सामानुभाव में दशहरा के दिन भोजपत्र का पूजन होता है और जो भी मूलांक होते हैं वह उस दिन समाहित किए जाते हैं. सूर्य सिद्धांत के नौवें विकर्ण के अनुसार जो बल बुद्धि और विवेक है. वही समाज में आपको हर प्रकार से मान सम्मान और स्थान दिलाता है, जब मान सम्मान और स्थान तीनों मिलते हैं. तब व्यक्ति का व्यक्तित्व आने वाली पीढ़ियों को मार्ग प्रशस्त करता है.