भोपाल । जबलपुर में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत ने कहा है कि सनातन धर्म ही हिंदू राष्ट्र, हिंदू संस्कृति है। भारत विश्व गुरु बनने जा रहा है और हमें बनना ही है। आज हम ही क्या, सारी दुनिया कह रही, भारत होने वाली महाशक्ति है। शक्ति के बिना भगवान शिव भी शव हैं। लेकिन, हमारी शक्ति दुर्बलों की रक्षा करेगी।
सनातन धर्म के अनुसार अपने जीवन के तरीके को खड़ा करो, हम किसी को जीतेंगे नहीं, बदलेंगे नहीं। संतों के उपदेशों को ग्रहण करते हुए हम सब धर्म के मार्ग पर चलें, तब यह संभव है। श्यामदेवाचार्य जैसी हस्तियां जाने के बाद भी पार्थिव रूप में हमारे साथ रहती हैं।
संघ प्रमुख ने ब्रह्मलीन जगतगुरु श्यामादेवाचार्य की द्वितीय पुण्यतिथि के कार्यक्रम में पहुंचे। नरसिंह मंदिर में उन्होंने श्यामादेवाचार्य की प्रतिमा का अनावरण किया। यहां 12 अप्रैल से कार्यक्रम चल रहे हैं। आज समापन है। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को भी आना था, लेकिन वे नहीं आ सके। भागवत आज शाम को 4.45 बजे मानस भवन में रामानंदाचार्य के प्राकट्य के 723 वर्ष पूर्ण होने में आयोजित कार्यक्रम में व्याख्यान देंगे। वे सोमवार देर रात बुरहानपुर से जबलपुर पहुंचे।
मनुष्य ने समूह बनाए, फिर राजा
भागवत ने कहा- भारत वर्ष पहले भी था आज भी है, बाद में भी रहेगा। हर राष्ट्र बनने का प्रयोजन पूरा करने के बाद देश अंतध्र्यान हो जाते हैं, पर भारत का प्रयोजन खत्म नहीं हुआ है। मनुष्य सबसे दुर्बल है, लेकिन भगवान ने उसे बुद्धि दी, इसलिए वह सब प्राणियों का राजा है। मनुष्य सोचता है कि सब मिलकर रहें। मनुष्य ने समूह बनाए, जिन्हें कबीले कहा गया। कबीले लड़ते थे, रक्तपात होता था, इसलिए राजा बना दिया गया।
संतों ने धर्म की कल्पना धारण की
वैभव के शिखर पर जाकर भी संतोष नहीं मिला तो अंदर देखना शुरू किया। अंतत: वो मिला जिसे सत्य और अनंत आनंद कहते हैं। यह ज्ञान मिला कि सब उसकी चराचर रचना है। इसलिए कोई अलग नहीं है। संतों ने सोचा कि यह जो हमें मिला, सबको मिलना चाहिए। तब उन्होंने धर्म की कल्पना धारण की, इसलिए इसे धर्म कहा। हर 4 साल के बाद भारत में ऐसी कई परम्पराएं आती हैं और वे कहते हैं कि ये सभी परम्पराएं भारत में संरक्षित हैं।
संत सेवा नहीं करेंगे, तो मनुष्यता से वंचित हो जाएंगे
भौतिक बल गठन कर मनुष्य सुखी नहीं रह सकता है। सबमें हम, हममें सब, यह धारणा धर्म है। आज भी ऐसी विभूतियां जो इस धर्म का पालन करते हैं। संत देवता का अवतार हैं। भारत वर्ष का हर आदमी, पूरा जीवन उस प्रकार बनाने के लिए प्रयास जरूर करता है। कितना भी गरीब हो, वह कहता है कि वहां जाना है। वहां कुछ काम नहीं आएगा। इसलिए भजन करो। हम में यह भाव है। किसी अन्य देश, धर्म में नहीं। संत सेवा नहीं करेंगे, तो हम मनुष्यता से वंचित हो जाएंगे।
मिशनरियों से ज्यादा हमारे संतों ने सेवा की
मिशनरियों का बोलबाला है, लेकिन चेन्नई में 4 राज्यों ने समीक्षा की तो उजागर हुआ कि सबसे ज्यादा सेवा हमारे संत करते हैं। गूढ़ बातों को सामान्य शब्दों में संत समझते हैं। इनके होने पर दुनिया का अस्तित्व बना हुआ है। चंद्रमा समान शीतल, लेकिन कलंकित नहीं। सूर्य के समान अलोकदाता किंतु प्रचंड नहीं।