भोजशाला में मां वाग्देवी की प्रतिकृति का पूजन-अर्चन किया गया
धार । धार की प्राचीन धरोहर राजा भोज कालीन संस्कृत महाविद्यालय माने जाने वाली भोजशाला में बसंत पंचमी पर्व पर बुधवार को सूर्योदय के साथ ही दर्शन-पूजन एवं हवन का दौर शुरू हो गया, जो सूर्यास्त तक चलेगा। इसके साथ ही बुधवार से चार दिवसीय बसंत महोत्सव का भी शुभारंभ हो गया है। इसी कड़ी में धार का गौरव दिवस भी मनाया जा रहा है। बुधवार को सूर्योदय के साथ ही प्राचीन भोजशाला में माँ वाग्देवी सरस्वती के दर्शन पूजन को लेकर श्रद्धालुओं के आने का सिलसिला शुरू हुआ। हर कोई ज्ञान की देवी मां वाग्देवी के दर्शन-पूजन कर हवन कुंड में अपनी आहुति डालने को आतुर दिखा। अल सुबह से ही भोजशाला में आयोजित बसंत पंचमी महोत्सव को लेकर नगर में उत्साह का वातावरण है। और बड़ी संख्या में श्रद्धालु भोजशाला में पहुंच रहे हैं। भोज उत्सव समिति ने भोजशाला को भगवा पताकाओं के साथ ही फूलों की मालाओं से सजाया है। पुलिस-प्रशासन ने भी आयोजन की सुरक्षा को देखते हुए भारी तादाद में तैनाती की है। कड़े सुरक्षा इंतजाम किए गए हैं तथा सीसीटीवी कैमरों के माध्यम से निगाह रखी जा रही है।
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क्या है भोजशाला का विवाद
प्रत्येक शुक्रवार मुस्लिम समाज यहां नमाज पढ़ता है तो मंगलवार को हिंदू समाज दर्शन पूजन के साथ हनुमान चालीसा का आयोजन करता है। इतिहासकारों के अनुसार उक्त भोजशाला मां सरस्वती के उपासक राजा भोज ने बनाई थी। यहां पर संस्कृत सहित विभिन्न भाषाओं में दुनियाभर से आए विद्यार्थी ज्ञान प्राप्त करते थे। इसके बाद 1305 ईसवी में अलाउद्दीन खिलजी ने भोजशाला को ध्वस्त कर दिया था। बाद में दिलावर खां गौरी ने 1401 ईसवी में उन्ही अवशेषों से भोजशाला के एक भाग में मस्जिद बनवा दी। 1514 ईस्वी में महमूद शाह खिलजी ने शेष भाग पर भी मस्जिद बनवा दी थी। इसके बाद से भोजशाला की मुक्ति को लेकर हिन्दू समाज लगातार आंदोलन करता रहा।
लंदन में है मां वाग्देवी की मूर्ति
अंग्रेजों के शासनकाल में यहां से मां वाग्देवी सरस्वती की मूर्ति को लंदन ले जाया गया था। उसको लाने को लेकर भी तमाम राजनीतिक प्रयास जारी है। भोजशाला मुक्ति को लेकर कई बार धार विवादों में रहा है। भोजशाला में प्रतिवर्ष बसंत पंचमी पर वर्षों से भोज उत्सव समिति द्वारा भोज महोत्सव अंतर्गत आयोजन किए जा रहे हैं। इसमें बड़ी संख्या में श्रद्धालु भाग लेते हैं। बसंत पंचमी पर सुबह से दर्शन पूजन के बाद दोपहर में 12 बजे मां वाग्देवी के तेल चित्र के साथ भव्य शोभा यात्रा निकाली जाती है। इसके बाद एक धर्म सभा का भी आयोजन होगा। चार दिनों तक लगातार समिति द्वारा आयोजित विभिन्न कार्यक्रम होंगे।