नागपुर । राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के मुख्यालय के अलावा महाराष्ट्र का नागपुर संतरों के लिए दुनिया अलग ही पहचान रखता है। लेकिन अब नागपुर को केंद्रीय मंत्री गडकरी का गढ़ भी माना जाने लगा है। पिछले 10 साल में गडकरी ने गली-मोहल्ले छान मारे और शायद ही ऐसा कोई इलाका शेष हो, जहां उन्होंने काम न किया हो। हालांकि, इस बार गडकरी को चुनौती देने वाले विकास ठाकरे को बिना मांगे ही प्रकाश आंबेडकर की वंचित बहुचन विकास आघाडी ने समर्थन दे दिया है और एमआईएम ने भी उम्मीदवार नहीं उतारा है। गडकरी के लिए यह व्यूह रचना ठीक नहीं मानी जा रही है। सवाल उठ रहे हैं कि कांग्रेस उम्मीदवार ठाकरे को वंचित के समर्थन देने के पीछे कौन सी शक्तियां खड़ी हैं? एमआईएम के उम्मीदवार न उतारने का कारण क्या है, जबकि बीजेपी के विरोधी आरोप लगाते हैं कि आंबेडकर और एमआईएम बीजेपी की बी टीम है। इसके बाद नागपुर लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र में यह चर्चा जोरों पर है कि क्या गडकरी को घेरने के लिए यह चक्रव्यूह रचा गया है?
आंबेडकर की वंचित ने यहां से उम्मीदवार नहीं उतारा और ओवैसी की पार्टी एमआईएम ने भी उम्मीदवार नहीं दिया है, जबकि कांग्रेस ने आंबेडकर से समर्थन नहीं मांगा था। महाराष्ट्र की राजनीति को करीब से जानने वाले कहते हैं कि किसके कहने पर वंचित ने कांग्रेस उम्मीदवार को समर्थन दिया है। एमएमआई के उम्मीदवार नहीं उतारने का कारण क्या है, इस पर शक दिल्ली की ओर जाता है। यह बात गडकरी को कचोट रही है, तब कांग्रेस खेमा उत्साहित है।
इस बार गडकरी के सामने कांग्रेस ने इसी क्षेत्र के विधायक विकास ठाकरे को उम्मीदवार बनाया है। विकास नागपुर के मेयर रहे हैं। नागपुर महानगरपालिका में कई साल तक नेता विपक्ष रहे हैं। शहर पर उनकी अच्छी पकड़ है और जिस कुनबी समाज से आते हैं, उस समाज के वोटर्स की संख्या 6 लाख के करीब है। विकास का चुनाव प्रचार करने के लिए राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे आए, जबकि गडकरी के चुनाव प्रचार के लिए उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ। वंचित ने जब से कांग्रेस उम्मीदवार को समर्थन देने की घोषणा की है, तब से गडकरी खेमा अलर्ट मोड पर है। चुनाव प्रचार में गडकरी का पूरा परिवार उतर गया है। गडकरी के व्यावहारिक होने के कारण उनके चुनाव प्रचार के लिए देश के कोने-कोने से लोग आ रहे हैं।
क्या है जातीय समीकरण
नागपुर लोकसभा चुनाव क्षेत्र में 22.23 लाख मतदाता हैं, जिसमें हिंदीभाषी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। करीब साढ़े चार लाख हिंदीभाषी मतदाता है, जिसमें करीब 3 लाख के आस-पास उत्तर प्रदेश, बिहार के हैं। करीब साढ़े 3 लाख मुस्लिम मतदाता हैं। कुनबी, तेली, दलित के चार-चार लाख के करीब मतदाता हैं। इनमें कांग्रेस के उम्मीदवार ठाकरे कुनबी समाज से हैं। उनका दावा है कि कुनबी, दलित, मुस्लिम और हिंदीभाषी समाज उनके साथ है। तेली समाज के समर्थन का दावा भी ठाकरे कर रहे हैं। दूसरी ओर, गडकरी का दावा करते हैं कि उन्हें सभी समाज का समर्थन हासिल है और वह पिछली बार से ज्यादा वोट हासिल कर जीत रहे हैं। कांग्रेस को और ज्यादा मार्जिन से हराएंगे। गडकरी का मिलनसार स्वभाव उन्हें अन्य नेताओं से कुछ अलग जरूर करता है। जातीय समीकरण साधने के लिए गडकरी ने ओबीसी समाज के विकास के लिए संवैधानिक दर्जा प्राप्त आयोग का गठन में योगदान दिया।