क्या पदोन्नति का रास्ता खोल पाएगी मोहन सरकार?
भोपाल । मप्र में वर्षों से पदोन्नति की राह ताक रहे लाखों कर्मचारियों का उम्मीद है की मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव की सरकार उनकी मंशा को पूरा कर सकती है। यानी पदोन्नति का रास्ता निकाल पाएगी। गौरतलब है कि प्रदेश में हाई कोर्ट की रोक के बाद पिछले सात सालों के दौरान 70 हजार से अधिक सरकारी कर्मचारी बिना पदोन्नति के ही रिटायर हो गए। वहीं प्रदेश में सवा तीन लाख से अधिक कर्मचारियों को पदोन्नति का इंतजार है। उल्लेखनीय है कि पिछली सरकार में कहा गया था कि प्रदेश में सात साल से पदोन्नतियों पर लगी रोक को हटाने सरकार ने पदोन्नति नियम 2022 तैयार कर लिया है। पदोन्नति प्रस्ताव में आरक्षित वर्ग एसटी से 20 फीसदी और एससी से 16 फीसदी कुल पदों का 36 प्रतिशत आरक्षित कर बाकि पदों को अनारक्षित से भरना तय किया गया है। लेकिन बात आगे नहीं बढ़ पाई।
मप्र में हाईकोर्ट ने 30 अप्रैल 2016 से पदोन्नति प्रक्रिया पर रोक लगा रखी है। इन छह साल के दौरान प्रदेश में 70 हजार से अधिक कर्मचारी पदोन्नति का लाभ बगैर ही रिटायर हो गए हैं। जबकि प्रदेश के सवा तीन लाख से अधिक कर्मचारियों को पदोन्नति का इंतजार है। हालांकि हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ सरकार सुप्रीम कोर्ट गई है। उसकी याचिका पर फैसला आना है। वहीं अफसरों का कहना है कि पदोन्नति नियम तैयार होने के बाद भी कोर्ट का जो फैसला होगा वह मान्य होगा। अब सबकी नजर मोहन यादव सरकार पर है। कर्मचारियों को उम्मीद है कि इस सरकार में पदोन्नति की राह निकल जाएगी।
तीन सरकारों की कोशिश नहीं हुई सफल
मप्र में पिछले सात वर्ष से सरकारी कर्मचारियों की पदोन्नतियां नहीं हुई हैं। वर्ष 2016 में हाई कोर्ट जबलपुर ने पदोन्नति नियम 2002 को निरस्त कर दिया था। तब से अब तक तीन सरकार बदल चुकी हैं लेकिन कोई भी सरकार पदोन्नति का रास्ता नहीं निकाल पाई हैं। दरअसल, मामला पदोन्नति में आरक्षण को लेकर फंसा हुआ है। इसको लेकर शिवराज सरकार ने समिति भी बनाई और वरिष्ठ अधिवक्ताओं से नियम भी बनवाए पर अभी तक कोई रास्ता नहीं निकल पाया है। इस बीच हजारों अधिकारी-कर्मचारी बिना पदोन्नत हुए ही सेवानिवृत्त हो गए। शिवराज के बाद कमल नाथ सरकार भी 15 माह के लिए आई पर उसने भी कुछ नहीं किया। मार्च 2020 में फिर शिवराज सरकार बनी और उन्होंने पदोन्नति के विकल्प के रूप में उच्च पद का प्रभार देने का निर्णय लेकर कर्मचारियों को साधने का प्रयास किया। प्रकरण अब भी उच्चतम न्यायालय में विचाराधीन है। अब 2016 के बाद से यह चौथी सरकार है और कर्मचारियों को उम्मीद है कि मोहन सरकार पदोन्नति में आरक्षण को लेकर कोई ठोस प्रयास कर इसका रास्ता निकालेगी।