चुनावी राज्य मध्य प्रदेश में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के शासनकाल में महिलाओं के उत्थान और उनके विकास के लिए सराहनीय कदम उठाए गए हैं। सरकार की ओर से उठाए गए कदमों का ही नतीजा है कि आज प्रदेश की महिलाएं न केवल अपने राज्य में बल्कि देश-विदेश में नाम कमा रही हैं। भाजपा सरकार के कार्यकाल में जनजातीय महिलाओं ने पंचायत भवन से लेकर राष्ट्रपति भवन तक परचम लहराया। मध्यप्रदेश में भी शिवराज सरकार जनजातीय महिला सशक्तिकरण के लिए संकल्पित है। 15 वर्षों के भाजपा कार्यकाल में कई ऐसी जनजातीय योजनाएं शुरू एवं संचालित की गई, जो राष्ट्रीय स्तर पर चर्चित रही हैं। 

मध्यप्रदेश में जनजातीय महिलाओं के उत्थान के लिए एक बेहद संवेदनशील योजना की शुरूआत वर्ष 2017 में सीएम शिवराज द्वारा की गई थी। पोषण से स्वस्थ जीवन से जनजातीय महिलाओं को जोड़ने वाली ये आहार अनुदान योजना राष्ट्रीय परिदृश्य में जनजातीय महिलाओं से जुड़ी योजनाओं में नंबर 1 कहलाती है। इस योजना के जरिए हर महीने जनजातीय महिलाओं के खाते में 1000 रुपए पहुंचाए जाते हैं, ताकि उनका जीवन कुपोषण से मुक्त हो सके।

चारदीवारी से बाहर निकल देश-दुनिया में बना रही हैं पहचान

भाजपा सरकार ने जनजातीय महिलाओं के सशक्तिकरण की दिशा में कई महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं। यह भाजपा की डबल इंजन सरकार की ओर से उठाए गए कदमों का ही नतीजा है कि भीलांचल जिले की सीता वसुनिया महिला सशक्तिकरण की मिसाल बन चुकी है। सीता ने एक जिला एक उत्पाद स्कीम के तहत ट्रेनिंग ली और खुद की डिजाइन की साड़ी से पहचान पाई। बताते चलें कि 25 साल की सीता वसुनिया साधारण आदिवासी महिला की तरह ही थीं। लेकिन अब वो फैशन मैगजीन वॉग का हिस्सा बन चुकी हैं। दिल्ली के फैशन फोटोग्राफर ने सीता की तस्वीर रानी रूपमती महल, मांडू के मशहूर टूरिस्ट स्पॉट पर ली थी। जहां पर वो माहेश्वरी हैंडलूम की साड़ी पहने थीं। जिस पर ब्लॉक प्रिंट उन्होंने खुद से किए थे। 
बैतूल जिले की जनजातीय महिलाओं की जिंदगी रेशम ने बदल दी। स्वसहायता समूह से जुड़ी ये 755 जनजातीय महिलाएं महिलाएं सतपुड़ा वुमन सिल्क प्रोड्यूसर कंपनी में शेयर होल्डर्स हैं और कंपनी का टर्न ओवर सालाना ढाई से तीन करोड़ है। बता दें कि बैतूल में चार विकासखंडों के 40 जनजातीय बाहुल्य गांवों की 755 जनजातीय किसान महिलाओं ने रेशम उत्पादक कंपनी (एफपीओ) का गठन किया। दरअसल, मध्यप्रदेश में पहली ऐसी रेशम उत्पादक कम्पनी बनाई गई है, जो किसी शहर में नहीं, बल्कि ठेठ ग्रामीण परिवेश में चल रही है। इसका संचालन चूल्हा चौका संभालने वाली आदिवासी महिलाएं कर रही है, जो रेशम बनाने से लेकर उसकी सप्लाई तक की जिम्मेदारी उठाकर करोड़ो रुपये का टर्नओवर कमा रही हैं।

विभाग के बजट में जबरदस्त वृद्धि

इसके अलावा, कुपोषण से लड़ने के लिए बैगा, भारिया, सहरिया जनजाति की 2 लाख 25 हजार महिला हितग्राहियों के खाते में हर महीने करीब 22.51 करोड़ रुपए जमा किए जाते हैं। साथ ही, भाजपा शासनकाल में जनजातीय विभाग के बजट में भी बढ़ोतरी की गई। वर्ष 2003-04 में जनजातीय कार्य विभाग का बजट करीब 746 करोड़ 60 लाख रुपये था, जो 2023-24 में बढ़कर 11,748 करोड़ रुपये हो गया। इसके अलावा, अनुसूचित जाति सब-स्कीम के लिए वित्त वर्ष 2023-24 में शिवराज सिंह चौहान सरकार की ओर से 36,950 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है। वहीं, सामाजिक-आर्थिक क्षेत्रों के विकास के लिए सरकार की ओर से अनुसूचित जाति सब-स्कीम के लिए 26,087 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है।