साल 1983 और तारीख 18 जून। 24 साल के युवा कपिल देव ने इसी दिन भारतीय टीम को क्रिकेट के खेल में अपनी दमदार पारी से पहचान दिलाई थी। महज 17 रन के स्कोर पर भारत की आधी टीम पवेलियन लौट चुकी थी और एक के बाद एक बल्लेबाज जिम्बाब्वे के गेंदबाजों के आगे घुटने टेकते जा रहा था। ऐसे में कपिल देव ने बल्ले से वो चमत्कार करके दिखाया था, जिसकी तारीफ आजतक होती है। कपिल के बल्ले से निकली 175 रन की विस्फोटक पारी को वर्ल्ड क्रिकेट ने सलाम ठोका था। असल मायनों में कपिल की उसी पारी ने भारतीय टीम में वर्ल्ड कप जीतने का विश्वास पैदा किया था।

17 पर आधी टीम लौट चुकी थी पवेलियन

भारतीय टीम के अपने पांच विकेट महज 17 के स्कोर पर गंवा दिए थे। जिम्बाब्वे के गेंदबाज पूरी तरह से हावी थी। भारतीय फैन्स के चेहरे मुरझा चुके थे और ड्रेसिंग रूम के अंदर भी माहौल कुछ ठीक नहीं था। सुनील गावस्कर, श्रीकांत, मोहिंदर अमरनाथ, संदीप पाटिल जैसे बल्लेबाज सस्ते में पवेलियन लौट चुके थे। टीम इंडिया को शर्मनाक हार का डर सता रहा था।

कपिल देव की यादगार पारी

कपिल देव उस दिन बल्ला थामकर वर्ल्ड क्रिकेट में अपनी नई पहचान बनाने मैदान पर उतरे थे। कपिल ने रोजर बिन्नी, मदन लाल और रवि शास्त्री के साथ मिलकर टीम की पारी को संभालने की कोशिश की, लेकिन कोई भी उनका दूसरे छोर से टिककर साथ नहीं निभा सका। 140 के स्कोर पर भारतीय टीम ने अपने 8 विकेट गंवा दिए थे।

भारत की झोली में आई थी जीत

इसके बाद कपिल ने विकेटकीपर बैटर सैयद किरमानी के साथ मिलकर 9वें विकेट के लिए 126 रन की साझेदारी निभाई। कपिल देव ने 138 गेंदों पर 16 चौके और छह गगनचुंबी छक्कों के दम पर 175 रन की यादगार पारी खेली, जिसके दम पर भारतीय टीम स्कोर बोर्ड पर 266 रन लगाने में सफल रही। इस लक्ष्य के जवाब में जिम्बाब्वे की पूरी टीम 235 रन बनाकर सिमट गई थी।